राहत इंदौरी (१९५० -- ११-०७-२०२०)

अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द्द में
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ की दुश्मन भी कम नहीं ...
लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी जुबां थोड़ी है

जो आज साहिब-इ-मसनद है कल नहीं होंगे
किराएदार है जाती मकान थोड़ी है

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है

~ राहत इंदौरी.

 

also see: https://kractivist.org/poet-rahat-indori-who-had-tested-positive-for-covid-19-passes-away/

 

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